महात्मा गाँधी ने कहा था,” निरंतर विकास जीवन का नियम है,और जो व्यक्ति खुद को सही दिखाने के लिए हमेशा अपनी रूढ़िवादिता को बरकरार रखने की कोशिश करता है वो खुद को गलत स्थिति में पहुंचा देता है।”
हम सब जानते हैं कि इस 15 अगस्त हमारे देश को आज़ाद हुए 74 वर्ष हो गए हैं। पर क्या हम वाकई आज़ाद हैं? क्या सिर्फ आज़ाद देश में रहना ही आज़ादी कहलाती है ?
मेरे विचार से ,नहीं ,क्योंकि केवल आज़ाद सोच ही हमें उन रूढ़िवादी लोगों से ज़्यादा ज्ञान प्राप्त करने में ऊर्जा दे सकती है। आज़ाद देश में रहना और आज़ाद सोच न रखना, एक मधुमक्खी के समान है जो मेहनत करके शहद तो बना लेती है पर उसकी मिठास को ग्रहण नहीं कर पाती।
आज़ाद सोच रखना क्या होता है ?
यूँ समझ लीजिए की यह एक पिंजरे से आज़ाद पंछी की तरह है जो क्षितिज की तलाश में कई अद्भूत दृश्यों का अनुभव कर लेता है।
भारत का संविधान के तहत हमें कई अधिकारों का चयन करने को मिला जो बाकी देशों में उपलब्ध नहीं हैं। किंतु विंडबना यह है कि अभी भी आम आदमी असुरक्षित एवं भय का घर बना हुआ है । क्यों? इस प्रशन का उत्तर हमें आजकल की खबरों को देख कर पता लग जाऐगा। हम आज़ादी के लिए दुश्मनों से लड़ सकते हैं फिर क्या हम अपनी रूढ़िवादी सोच से नहीं लड़ सकते? कोई भी व्यक्ति इस दुनिया को नहीं बदल सकता जब तक वह अपनी सोच को आज़ाद नहीं कर लेता।
अतः आज़ाद सोच ही हमें उन कु:विचारों से मुक्त करके इस देश को और सशक्त एवं देशवासियों को कुशल और कौशल दोनों प्रधान कर सकती है।
Azzad soch!! Jai hind
Bilkul sahi ,azaadi kewal tirange ko lehrane me nhi ,azaadi k paibasha humare ek dusre k saath se hai ,indian flag k colors or bhi bright dikhenge jab hum apne chehre se mukhote or Mann saaf karenge ,or ye ehsaas karenge k asli freedom power of humanity se bhi laayi ja sakti .
Jai Hind,jai bharat !
I agree with your opinion 😊✨
Good one!!